Pitra Dosh Shanti Puja: Honoring Ancestors for Spiritual Harmony

According to the Hindu calendar Pitrupaksha starts immediately after the Ganesh festival and ends with the New moon day know as Sarvapitri amavasya. The Hindus offer homeage to their ancestors during pitrupaksha to get their blessings and help their soul attain the path of Heaven.

According to Hinduism, the souls of three preceding generations of one’s ancestor reside in Pitru–loka, a realm between heaven and earth. This realm is governed by Yama, the god of death, who takes the soul of a dying man from earth to Pitru–loka. When a person of the next generation dies, the first generation shifts to heaven and unites with God, so Shraddha offerings are not given. Thus, only the three generations in Pitru–loka are given Shraddha rites, in which Yama plays a significant role. According to the sacred Hindu epics, at the beginning of Pitru Paksha, the sun enters the zodiac sign of Libra (Tula). Coinciding with this moment, it is believed that the spirits leave Pitru–loka and reside in their descendants’ homes for a month until the sun enters the next zodiac—Scorpio (Vrichchhika)—and there is a full moon. Hindus are expected to propitiate the ancestors in the first half, during the dark fortnight.

Narayan Nagbali / Tripindi Shraddha are also few rituals performed to get rid of Pitru Dosh. Performing these poojas’ during the period (5th to 19th September) of Pitrupaksha(पितृ पक्ष) will be more beneficial, however If you have severe PitruDosha, You can perform Shri Vishnu Sahatranaam Hawan, and Puja on every Month on Amavasya.

नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है। व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।

कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है, यह पिता का घर भी होता है, अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी, जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है वे सूर्य मंगल शनि कहे जाते है और कुछ लगनों में अपना काम करते हैं, लेकिन राहु और केतु सभी लगनों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं, नवां भाव, नवें भाव का मालिक ग्रह, नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है, उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है, वह जीविका के लिये तरसता रहता है, वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से अपंग होता है।

अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है।

पितृ दोष के लक्षण

  • गर्भधारण में समस्या
  • गर्भपात
  • मानसिक व शारीरिक दृष्टि से विकलांग बच्चे
  • बच्चों की अकाल मृत्यु
  • विवाह में बाधा
  • वैवाहिक जीवन में क्लेश
  • बुरी आदत (70 फ़ीसदी व्यसन पितृदोष के कारण होते हैं)
  • नौकरी में कठिनाई
  • क़र्ज़

Book Pitra Dosh Shanti Puja

पितृ दोष निवारण मंत्र

ब्रह्म पुराण (२२०/१४३ )में  पितृ गायत्री मंत्र दिया गया है ,इस मंत्र कि प्रतिदिन माला या अधिक जाप करने से पितृ दोष में अवश्य लाभ होता है

पूर्वजों के स्मरण में प्रतिदिन ॐ श्री पितराय नम: तथा ॐ श्री पितृदेवाय नमः का २१ बार जाप करें।

ॐ श्री पितृभ्य: नम: मंत्र का ५१ बार जाप करने से पित्रों को प्रसन्नता होती है।

ॐ श्री सर्व पितृ देवताभ्यो नमो नमः मंत्र का १०८ बार जाप करने से पित्रों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महा योगिभ्य एव  च ।

नमः स्वाहायै स्वधायै  नित्यमेव नमो नमः ।।

ब्रह्म पुराण में इस मंत्र को पितृ गायत्री मंत्र कहा गया है, इस मंत्र कि हररोज़ १ माला या अधिक जाप करने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है।

पितृ दोष शांति के उपाय

१) अमावस्या का दिन पितृ दोष निवारण पूजा के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।  इस दिन पितृ दोष पूजा कराने से पितृ दोष दूर होता है।

२) पितृ दोष निवारण पूजा अमावस्या तिथि, या पितृ पक्ष के काल में किसी भी दिन की जा सकती है। इस पूजा का उत्तम काल दोपहर का होता है।

३) पितृ पक्ष में हररोज़ पित्रों की शांति के निमित से जल, जौं और काले तिल एवं पुष्प के साथ पित्रों का तर्पण कराने से पितृ दोष दूर होता हैं।

४) पित्रों की मृत्यु तिथिका पता न हो तब सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कराना चाहिए जिसके प्रभाव से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

५) सर्व पितृ अमावस्या और हर अमावस्या के दिन १०८ बार श्री विष्णुसहत्रनाम का पाठ, पूजा एवं  हवन अनुष्ठान करने से से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है।

६) पितृ पक्ष में कौवों को भोजन कराने से पितृ दोष में राहत मिलती है। ऐसी मान्यता है की, पितृ पक्ष में हमारे पितृ कौवों का रूप धारण करके धरती पर अपने परिवार के वंशजों के पास भोजन प्राप्त करने जाते हैं।

७) पितृ पक्ष में गाय की सेवा करने से पित्रों को शांति मिलती है तथा गाय को भोजन कराने से विशेष लाभ मिलता है।

८) महामृत्युंजय मंत्र का जाप २१ सोमवार तक करने से पितृ दोष  का प्रभाव कम होता है।

९) प्रति अमावस्या इष्ट देवता एवं कुल देवता की पूजा के साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ- पूजा एवं  हवन अनुष्ठान करने से भी पितृ दोष का प्रभाव काम होता है।

१०) पीपल के पेड़ के निचे मिटटी का दिया जला कर १०८ बार निचे दिए गए मंत्र का जाप करे, और पितृ देव से शांति का आशीर्वाद मांगें।

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महा योगिभ्य एव  च ।

नमः स्वाहायै स्वधायै  नित्यमेव नमो नमः ।।

मार्कंडेय पुराण (९४/१३ )में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ  प्रसन्न होकर  स्तुतिकर्ता  मनोकामना कि पूर्ती करते हैं|

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।

तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।

द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।

अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।

प्रजापतं कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।

नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।

अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।

अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।

तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।

नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।

अर्थ:

रूचि बोले – जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।

जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।

जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।

नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।

जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।

प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।

सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।

चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।

अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।

जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों।

विशेष – मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति ‘पितृस्तोत्र’ कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है।

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