Soul Therapy Now https://soultherapynow.com/ New Site Mon, 07 Oct 2024 11:31:23 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.7 https://soultherapynow.com/wp-content/uploads/2024/04/Soul-Therapy-Now-Logo-46x46.png Soul Therapy Now https://soultherapynow.com/ 32 32 कलयुग में अपार धन, वैभव और ऐश्वर्य दायक :स्वर्णाकर्षण भैरव साधना https://soultherapynow.com/%e0%a4%95%e0%a4%b2%e0%a4%af%e0%a5%81%e0%a4%97-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%85%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%a7%e0%a4%a8-%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%ad%e0%a4%b5-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%90/ https://soultherapynow.com/%e0%a4%95%e0%a4%b2%e0%a4%af%e0%a5%81%e0%a4%97-%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%85%e0%a4%aa%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%a7%e0%a4%a8-%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%ad%e0%a4%b5-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%90/#respond Mon, 07 Oct 2024 11:31:23 +0000 https://soultherapynow.com/?p=23212 दरिद्रता नाशक और धन प्राप्ति के उपाय श्री स्वर्णाकर्षण भैरव :   स्वर्णाकर्षण भैरव भगवान की महिमा का वर्णन करते हुए, महर्षि मार्कण्डेय जी को नन्दी जी ने यह स्तोत्र सुनाया था। इस स्तोत्र को पढ़ने से विशेष रूप से उन लोगों को लाभ होता है जिनकी कुंडली में धन भाव पर क्रूर ग्रहों का […]

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दरिद्रता नाशक और धन प्राप्ति के उपाय

कलयुग में अपार धन, वैभव और ऐश्वर्य दायक :स्वर्णाकर्षण भैरव साधना

श्री स्वर्णाकर्षण भैरव :

 

स्वर्णाकर्षण भैरव भगवान की महिमा का वर्णन करते हुए, महर्षि मार्कण्डेय जी को नन्दी जी ने यह स्तोत्र सुनाया था। इस स्तोत्र को पढ़ने से विशेष रूप से उन लोगों को लाभ होता है जिनकी कुंडली में धन भाव पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव होता है। यदि किसी व्यक्ति को अनेक उपायों के बावजूद धन की समस्या से छुटकारा नहीं मिल रहा है, तो उसे 41 दिन तक नियमपूर्वक इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिए और साथ में 5 माला मंत्र का जाप करना चाहिए। ऐसा करने से निश्चित रूप से धन लाभ होगा।

 

यह स्तोत्र “रुद्र यामल तंत्र” में वर्णित है, जहां भगवान शिव ने नन्दी जी को इसके बारे में बताया था। पुराणों में कहा गया है कि जब देवासुर संग्राम के 100 वर्षों के युद्ध के बाद कुबेर जी को धन की भारी हानि हुई और माँ लक्ष्मी भी धनहीन हो गईं, तब दोनों देवता भगवान शिव की शरण में गए। सभी देवताओं ने नन्दी जी के साथ भगवान शिव से यह प्रश्न किया कि कुबेर और लक्ष्मी जी के स्वर्ण भंडार फिर से कैसे भरे जा सकते हैं।

श्री स्वर्णाकर्षण भैरव  कथा

भगवान शिव ने नन्दी जी को **श्री मणिद्वीप** के कोषाध्यक्ष **स्वर्णाकर्षण भैरव भगवान** की महिमा बताई और उनकी उपासना का विधान बताया। लक्ष्मी जी और कुबेर जी ने बद्रीनाथ धाम में कठोर तप किया, जिसके बाद स्वर्णाकर्षण भैरव भगवान ने प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए और धन की वर्षा की। इसके फलस्वरूप, सभी देवता फिर से समृद्ध हो गए।

स्वर्णाकर्षण भैरव उपासना विधान:

धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि स्वर्णाकर्षण भैरव भगवान पाताल लोक में निवास करते हैं। इनकी उपासना रात्रि 12 बजे से 3 बजे तक की जाती है। उपासकों का कहना है कि इनकी उपस्थिति का अनुभव सुगंध के माध्यम से होता है, इसीलिए इनकी सवारी श्वान मानी जाती है, जो गंध सूंघने में माहिर होता है।

 

यदि आप अपनी कुंडली में धन संबंधी दोषों का निवारण करना चाहते हैं और धन लाभ प्राप्त करना चाहते हैं, तो इस साधना को विधिपूर्वक करें।

दहिने हाथ मे जल लेकर विनियोग मंत्र बोलकर जमिन पर छोड़ दिजीये ।

विनियोग – ।। ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षणभैरव महामंत्रस्य श्री महाभैरव ब्रह्मा ऋषिः , त्रिष्टुप्छन्दः , त्रिमूर्तिरूपी भगवान स्वर्णाकर्षणभैरवो देवता, ह्रीं बीजं , सः शक्तिः, वं कीलकं मम् दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगः।

अब बाए हाथ मे जल लेकर दहिने हाथ के उंगलियों को जल से स्पर्श करके मंत्र मे दिये हुए शरिर के स्थानो पर स्पर्श करे।

ऋष्यादिन्यासः श्री महाभैरव ब्रह्म ऋषये नमः शिरसि। त्रिष्टुप छ्न्दसे नमः मुखे। श्री त्रिमूर्तिरूपी भगवान स्वर्णाकर्षण भैरव देवतायै नमः ह्रदिः। ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये। सः शक्तये नमः पादयोः। वं कीलकाय नमः नाभौ। मम्‍ दारिद्रय नाशार्थे विपुल धनराशिं स्वर्णं च प्राप्त्यर्थे जपे विनियोगाय नमः सर्वांगे।

 

करन्यास

मंत्र बोलते हुए दोनो हाथ के उंगलियों को आग्या चक्र पर स्पर्श करे। अंगुष्ठ का मंत्र बोलते समय दोनो अंगुष्ठ से आग्या चक्र पर स्पर्श करना है। करन्यासः ॐ अंगुष्ठाभ्यां नमः। ऐं तर्जनीभ्यां नमः। क्लां ह्रां मध्याभ्यां नमः। क्लीं ह्रीं अनामिकाभ्यां नमः। क्लूं ह्रूं कनिष्ठिकाभ्यां नमः। सं वं करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

 

 

अंग न्यास:

अब मंत्र बोलते हुए दाहिने हाथ से मंत्र मे कहे गये शरिर के भाग पर स्पर्श करना है। आपदुद्धारणाय हृदयाय नमः। अजामल वधाय शिरसे स्वाहा। लोकेश्वराय शिखायै वषट्। स्वर्णाकर्षण भैरवाय कवचाय हुम्। मम् दारिद्र्य विद्वेषणाय नेत्रत्रयाय वौषट्। श्रीमहाभैरवाय नमः अस्त्राय फट्। रं रं रं ज्वलत्प्रकाशाय नमः इति दिग्बन्धः।

ध्यान

अब दोनो हाथ जोड़कर ध्यान करे।

ॐ पीतवर्णं चतुर्बाहुं त्रिनेत्रं पीतवाससम्। अक्षयं स्वर्णमाणिक्य तड़ित-पूरितपात्रकम्॥ अभिलसन् महाशूलं चामरं तोमरोद्वहम्। सततं चिन्तये देवं भैरवं सर्वसिद्धिदम्॥ मंदारद्रुमकल्पमूलमहिते माणिक्य सिंहासने, संविष्टोदरभिन्न चम्पकरुचा देव्या समालिंगितः। भक्तेभ्यः कररत्नपात्रभरितं स्वर्णददानो भृशं, स्वर्णाकर्षण भैरवो विजयते स्वर्णाकृति : सर्वदा॥

भावार्थ

श्रीस्वर्णाकर्षण भैरव जी मंदार(सफेद आक) के नीचे माणिक्य के सिंहासन पर बैठे हैं। उनके वाम भाग में देवि उनसे समालिंगित हैं। उनकी देह आभा पीली है तथा उन्होंने पीले ही वस्त्र धारण किये हैं। उनके तीन नेत्र हैं। चार बाहु हैं जिन्में उन्होंने स्वर्ण — माणिक्य से भरे हुए पात्र, महाशूल, चामर तथा तोमर को धारण कर रखा है। वे अपने भक्तों को स्वर्ण देने के लिए तत्पर हैं। ऐसे सर्वसिद्धिप्रदाता श्री स्वर्णाकर्षण भैरव का मैं अपने हृदय में ध्यान व आह्वान करता हूं उनकी शरण ग्रहण करता हूं। आप मेरे दारिद्रय का नाश कर मुझे अक्षय अचल धन समृद्धि और स्वर्ण राशि प्रदान करे और मुझ पर अपनी कृपा वृष्टि करें। णाकर्षण भैरवं अनुकल्पयामि नम:।

 

मंत्र :- ॐ ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं स: वं आपदुद्धारणाय अजामलवधाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षण भैरवाय मम् दारिद्रय विद्वेषणाय ॐ ह्रीं महाभैरवाय नम:।

 

श्री स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम्

।। श्री मार्कण्डेय उवाच ।।
भगवन् ! प्रमथाधीश ! शिव-तुल्य-पराक्रम !
पूर्वमुक्तस्त्वया मन्त्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
इदानीं श्रोतुमिच्छामि, तस्य स्तोत्रमनुत्तमं ।
तत् केनोक्तं पुरा स्तोत्रं, पठनात्तस्य किं फलम् ।।
तत् सर्वं श्रोतुमिच्छामि, ब्रूहि मे नन्दिकेश्वर !।।
।। श्री नन्दिकेश्वर उवाच ।।
इदं ब्रह्मन् ! महा-भाग, लोकानामुपकारक !
स्तोत्रं वटुक-नाथस्य, दुर्लभं भुवन-त्रये ।।
सर्व-पाप-प्रशमनं, सर्व-सम्पत्ति-दायकम् ।
दारिद्र्य-शमनं पुंसामापदा-भय-हारकम् ।।
अष्टैश्वर्य-प्रदं नृणां, पराजय-विनाशनम् ।
महा-कान्ति-प्रदं चैव, सोम-सौन्दर्य-दायकम् ।।
महा-कीर्ति-प्रदं स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।
न वक्तव्यं निराचारे, हि पुत्राय च सर्वथा ।।
शुचये गुरु-भक्ताय, शुचयेऽपि तपस्विने ।
महा-भैरव-भक्ताय, सेविते निर्धनाय च ।।
निज-भक्ताय वक्तव्यमन्यथा शापमाप्नुयात् ।
स्तोत्रमेतत् भैरवस्य, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मनः ।।
श्रृणुष्व ब्रूहितो ब्रह्मन् ! सर्व-काम-प्रदायकम् ।।

विनियोगः-

ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-स्तोत्रस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीस्वर्णाकर्षण-भैरव-देवता, ह्रीं बीजं, क्लीं शक्ति, सः कीलकम्, मम-सर्व-काम-सिद्धयर्थे पाठे विनियोगः ।

ध्यानः-

मन्दार-द्रुम-मूल-भाजि विजिते रत्नासने संस्थिते ।
दिव्यं चारुण-चञ्चुकाधर-रुचा देव्या कृतालिंगनः ।।
भक्तेभ्यः कर-रत्न-पात्र-भरितं स्वर्ण दधानो भृशम् ।
स्वर्णाकर्षण-भैरवो भवतु मे स्वर्गापवर्ग-प्रदः ।।

।। स्तोत्र-पाठ ।।

ॐ नमस्तेऽस्तु भैरवाय, ब्रह्म-विष्णु-शिवात्मने,
नमः त्रैलोक्य-वन्द्याय, वरदाय परात्मने ।।
रत्न-सिंहासनस्थाय, दिव्याभरण-शोभिने ।
नमस्तेऽनेक-हस्ताय, ह्यनेक-शिरसे नमः ।
नमस्तेऽनेक-नेत्राय, ह्यनेक-विभवे नमः ।।
नमस्तेऽनेक-कण्ठाय, ह्यनेकान्ताय ते नमः ।
नमोस्त्वनेकैश्वर्याय, ह्यनेक-दिव्य-तेजसे ।।
अनेकायुध-युक्ताय, ह्यनेक-सुर-सेविने ।
अनेक-गुण-युक्ताय, महा-देवाय ते नमः ।।
नमो दारिद्रय-कालाय, महा-सम्पत्-प्रदायिने ।
श्रीभैरवी-प्रयुक्ताय, त्रिलोकेशाय ते नमः ।।
दिगम्बर ! नमस्तुभ्यं, दिगीशाय नमो नमः ।
नमोऽस्तु दैत्य-कालाय, पाप-कालाय ते नमः ।।
सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं, नमस्ते दिव्य-चक्षुषे ।
अजिताय नमस्तुभ्यं, जितामित्राय ते नमः ।।
नमस्ते रुद्र-पुत्राय, गण-नाथाय ते नमः ।
नमस्ते वीर-वीराय, महा-वीराय ते नमः ।।
नमोऽस्त्वनन्त-वीर्याय, महा-घोराय ते नमः ।
नमस्ते घोर-घोराय, विश्व-घोराय ते नमः ।।
नमः उग्राय शान्ताय, भक्तेभ्यः शान्ति-दायिने ।
गुरवे सर्व-लोकानां, नमः प्रणव-रुपिणे ।।
नमस्ते वाग्-भवाख्याय, दीर्घ-कामाय ते नमः ।
नमस्ते काम-राजाय, योषित्कामाय ते नमः ।।
दीर्घ-माया-स्वरुपाय, महा-माया-पते नमः ।
सृष्टि-माया-स्वरुपाय, विसर्गाय सम्यायिने ।।
रुद्र-लोकेश-पूज्याय, ह्यापदुद्धारणाय च ।
नमोऽजामल-बद्धाय, सुवर्णाकर्षणाय ते ।।
नमो नमो भैरवाय, महा-दारिद्रय-नाशिने ।
उन्मूलन-कर्मठाय, ह्यलक्ष्म्या सर्वदा नमः ।।
नमो लोक-त्रेशाय, स्वानन्द-निहिताय ते ।
नमः श्रीबीज-रुपाय, सर्व-काम-प्रदायिने ।।
नमो महा-भैरवाय, श्रीरुपाय नमो नमः ।
धनाध्यक्ष ! नमस्तुभ्यं, शरण्याय नमो नमः ।।
नमः प्रसन्न-रुपाय, ह्यादि-देवाय ते नमः ।
नमस्ते मन्त्र-रुपाय, नमस्ते रत्न-रुपिणे ।।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, सुवर्णाय नमो नमः ।
नमः सुवर्ण-वर्णा य, महा-पुण्याय ते नमः ।।
नमः शुद्धाय बुद्धाय, नमः संसार-तारिणे ।
नमो देवाय गुह्याय, प्रबलाय नमो नमः ।।
नमस्ते बल-रुपाय, परेषां बल-नाशिने ।
नमस्ते स्वर्ग-संस्थाय, नमो भूर्लोक-वासिने ।।
नमः पाताल-वासाय, निराधाराय ते नमः ।
नमो नमः स्वतन्त्राय, ह्यनन्ताय नमो नमः ।।
द्वि-भुजाय नमस्तुभ्यं, भुज-त्रय-सुशोभिने ।
नमोऽणिमादि-सिद्धाय, स्वर्ण-हस्ताय ते नमः ।।
पूर्ण-चन्द्र-प्रतीकाश-वदनाम्भोज-शोभिने ।
नमस्ते स्वर्ण-रुपाय, स्वर्णालंकार-शोभिने ।।
नमः स्वर्णाकर्षणाय, स्वर्णाभाय च ते नमः ।
नमस्ते स्वर्ण-कण्ठाय, स्वर्णालंकार-धारिणे ।।
स्वर्ण-सिंहासनस्थाय, स्वर्ण-पादाय ते नमः ।
नमः स्वर्णाभ-पाराय, स्वर्ण-काञ्ची-सुशोभिने ।।
नमस्ते स्वर्ण-जंघाय, भक्त-काम-दुघात्मने ।
नमस्ते स्वर्ण-भक्तानां, कल्प-वृक्ष-स्वरुपिणे ।।
चिन्तामणि-स्वरुपाय, नमो ब्रह्मादि-सेविने ।
कल्पद्रुमाधः-संस्थाय, बहु-स्वर्ण-प्रदायिने ।।
भय-कालाय भक्तेभ्यः, सर्वाभीष्ट-प्रदायिने ।
नमो हेमादि-कर्षाय, भैरवाय नमो नमः ।।
स्तवेनानेन सन्तुष्टो, भव लोकेश-भैरव !
पश्य मां करुणाविष्ट, शरणागत-वत्सल !
श्रीभैरव धनाध्यक्ष, शरणं त्वां भजाम्यहम् ।
प्रसीद सकलान् कामान्, प्रयच्छ मम सर्वदा ।।

।। फल-श्रुति ।।

श्रीमहा-भैरवस्येदं, स्तोत्र सूक्तं सु-दुर्लभम् ।
मन्त्रात्मकं महा-पुण्यं, सर्वैश्वर्य-प्रदायकम् ।।
यः पठेन्नित्यमेकाग्रं, पातकैः स विमुच्यते ।
लभते चामला-लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् ।।
चिन्तामणिमवाप्नोति, धेनुं कल्पतरुं ध्रुवम् ।
स्वर्ण-राशिमवाप्नोति, सिद्धिमेव स मानवः ।।
संध्याय यः पठेत्स्तोत्र, दशावृत्त्या नरोत्तमैः ।
स्वप्ने श्रीभैरवस्तस्य, साक्षाद् भूतो जगद्-गुरुः ।
स्वर्ण-राशि ददात्येव, तत्क्षणान्नास्ति संशयः ।
सर्वदा यः पठेत् स्तोत्रं, भैरवस्य महात्मनः ।।
लोक-त्रयं वशी कुर्यात्, अचलां श्रियं चाप्नुयात् ।
न भयं लभते क्वापि, विघ्न-भूतादि-सम्भव ।।
म्रियन्ते शत्रवोऽवश्यम लक्ष्मी-नाशमाप्नुयात् ।
अक्षयं लभते सौख्यं, सर्वदा मानवोत्तमः ।।
अष्ट-पञ्चाशताणढ्यो, मन्त्र-राजः प्रकीर्तितः ।
दारिद्र्य-दुःख-शमनं, स्वर्णाकर्षण-कारकः ।।
य येन संजपेत् धीमान्, स्तोत्र वा प्रपठेत् सदा ।
महा-भैरव-सायुज्यं, स्वान्त-काले भवेद् ध्रुवं ।।

 

मूलमन्त्रः

ऐं क्लां क्लीं क्लूं ह्रां ह्रीं ह्रूं सः वं आपदुद्धारणाय अजामलबद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षणभैरवाय मम दारिद्र्यविद्वेषणाय श्रीं महाभैरवाय नमः

 

माला : रुद्राक्ष

पूजा किसके लिए करें स्वयं /किसी भी व्यक्ति के लिए जो अपने करियर, व्यवसाय या नौकरी में उन्नति की इच्छा रखता हो।
लक्ष्मी प्राप्ति पूजा हवन का सबसे उत्तम समय शुक्ल पक्ष की अष्टमी, चतुर्दशी और तृतीया / गुरु पुष्य नक्षत्र / पुष्य नक्षत्र / शुक्रवार / गुरुवार / पूर्णिमा और अमावस्या / स्नान के बाद नवरात्रि के दौरान।
सिद्धि के लिए मंत्र जाप की संख्या 1,25,000 बार मंत्र जाप और 1100 बार स्तोत्र पाठ।
लक्ष्मी प्राप्ति पूजा हवन कौन कर सकता है कोई भी व्यक्ति यह हवन कर सकता है।
मंत्र का जाप किस दिशा में करें पूर्व दिशा की ओर, माता लक्ष्मी और भगवान गणेश के समक्ष।
लक्ष्मी प्राप्ति पूजा हवन का उत्तम समय दिन के समय या संध्या में अभिजीत मुहूर्त में।
लक्ष्मी प्राप्ति पूजा हवन कितनी बार करें हर 3 महीने में 1 बार।
पूजा किसके लिए करें स्वयं / किसी भी व्यक्ति के लिए जो अपने करियर, व्यवसाय या नौकरी में उन्नति की इच्छा रखता हो।

 

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इस नवरात्र करें, शीघ्र फलदायी अखंड लक्ष्मी साधना प्रयोग https://soultherapynow.com/%e0%a4%87%e0%a4%b8-%e0%a4%a8%e0%a4%b5%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%b6%e0%a5%80%e0%a4%98%e0%a5%8d%e0%a4%b0-%e0%a4%ab%e0%a4%b2%e0%a4%a6/ https://soultherapynow.com/%e0%a4%87%e0%a4%b8-%e0%a4%a8%e0%a4%b5%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%a4%e0%a5%8d%e0%a4%b0-%e0%a4%95%e0%a4%b0%e0%a5%87%e0%a4%82-%e0%a4%b6%e0%a5%80%e0%a4%98%e0%a5%8d%e0%a4%b0-%e0%a4%ab%e0%a4%b2%e0%a4%a6/#respond Sat, 05 Oct 2024 09:42:30 +0000 https://soultherapynow.com/?p=23206 इस नवरात्र करें, शीघ्र फलदायी अखंड लक्ष्मी साधना प्रयोग कनकधारा स्तोत्र के साथ कनकधारा स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। यह स्तोत्र विशेष रूप से माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए जाना जाता है। आदि शंकराचार्य ने इस स्तोत्र की रचना तब की थी जब उन्होंने एक गरीब महिला को आशीर्वाद […]

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इस नवरात्र करें, शीघ्र फलदायी अखंड लक्ष्मी साधना प्रयोग कनकधारा स्तोत्र के साथ

कनकधारा स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य ने की थी। यह स्तोत्र विशेष रूप से माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए जाना जाता है। आदि शंकराचार्य ने इस स्तोत्र की रचना तब की थी जब उन्होंने एक गरीब महिला को आशीर्वाद देकर उसके जीवन में धन-समृद्धि का प्रवाह किया था। इस स्तोत्र का नाम “कनकधारा” इसलिए पड़ा क्योंकि “कणक” का अर्थ सोना होता है और “धारा” का अर्थ प्रवाह। ऐसा कहा जाता है कि जब शंकराचार्य ने यह स्तोत्र गाया, तो स्वर्ण की वर्षा होने लगी थी, जिससे उस महिला के जीवन में लक्ष्मी कृपा आई।

नवरात्र एक विशेष समय होता है जब साधक अपनी साधना को शक्ति प्रदान कर सकते हैं। नवरात्र के दौरान की गई साधनाएँ अधिक प्रभावी मानी जाती हैं, क्योंकि इस समय देवी दुर्गा और माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ समय होता है। यदि आप आर्थिक समृद्धि और अखंड लक्ष्मी की कृपा पाना चाहते हैं, तो कनकधारा स्तोत्र का जाप एक अत्यंत प्रभावी साधना हो सकती है।

 

 

कनकधारा स्तोत्र का महत्त्व

कनकधारा स्तोत्र की रचना आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। यह स्तोत्र माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा को शीघ्र प्राप्त करने के लिए सिद्ध माना गया है। यह स्तोत्र उन व्यक्तियों के लिए अत्यधिक लाभकारी होता है जो आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं या धन संबंधी परेशानियों से जूझ रहे हैं।

साधना करने का सही समय (Timing)

नवरात्र के दिनों में साधना का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। निम्न समय इस साधना के लिए उपयुक्त माने जाते हैं:

  • प्रातःकाल: सूर्योदय के पहले या सूर्य उदय के समय
  • संध्याकाल: सूर्यास्त के बाद का समय (सांध्य समय)
  • आप इस साधना को दिन में दो बार कर सकते हैं, लेकिन अगर यह संभव न हो तो संध्या का समय सबसे उत्तम है।

साधना विधि (Vidhi)

  1. स्थान चयन: सबसे पहले एक शांत स्थान चुनें जहाँ आपको कोई व्यवधान न हो। यह स्थान स्वच्छ और पवित्र होना चाहिए।
  2. आसन: साधना के लिए आप कुश का आसन या लाल वस्त्र का आसन बिछा सकते हैं। आसन पर बैठकर अपना मुख पूर्व या उत्तर दिशा की ओर रखें।
  3. माँ लक्ष्मी की स्थापना: माँ लक्ष्मी की प्रतिमा या चित्र के सामने घी का दीपक जलाएं और पुष्प अर्पित करें।
  4. शुद्धि एवं संकल्प: अब अपने हाथ में जल लेकर संकल्प लें कि आप अखंड लक्ष्मी साधना कर रहे हैं और इससे आपको धन, समृद्धि और सुख-समृद्धि की प्राप्ति हो।
  5. नैवेद्य अर्पण: जाप के बाद माँ लक्ष्मी को नैवेद्य (फलों, मिठाइयों) का भोग लगाएं।

 

इन श्लोकों के साथ पूरे कनकधारा स्तोत्र का जाप करने से शीघ्र लक्ष्मी कृपा प्राप्त होती है।

जप संख्या (Jaap Sankhya)

  • प्रतिदिन 11 माला जाप करें।
  • यदि अधिक माला करने की इच्छा हो तो 21 माला या 40 माला भी की जा सकती हैं, परंतु न्यूनतम 11 माला अवश्य करें।
  • जाप माला : स्फटिक की माला

साधना के फायदे

  1. आर्थिक समृद्धि: कनकधारा स्तोत्र के जाप से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं और घर में समृद्धि आती है।
  2. धन का प्रवाह: जो व्यक्ति नियमित रूप से इस स्तोत्र का जाप करता है, उसके जीवन में धन का प्रवाह निर्बाध होता है।
  3. शांति और स्थिरता: इस साधना से मन में शांति आती है और मानसिक तनाव दूर होता है।

 

कनकधारा स्तोत्र इस प्रकार हैं,:

 

कनकधारा स्तोत्र

 

अङ्गं हरै (हरेः) पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाऽगनेव मुकुलाभरणं तमालं |
अंगीकृताऽखिलविभूतिरपॉँगलीलामाँगल्यदाऽस्तु मम् मङ्गलदेवतायाः || ||

 

मुग्धा मुहुर्विदधी वदने मुरारेः प्रेमत्रपा प्रणिहितानि गताऽगतानि
मलार्दशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा में श्रियं दिशतु सागर सम्भवायाः || ||

विश्वामरेन्द्र पदविभ्रमदानदक्षमानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोपि |
ईषन्निषीदतु मयि क्षण मीक्षणार्धंमिन्दीवरोदर सहोदरमिन्दीरायाः || ||

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदामुकुन्दमानन्द कंदमनिमेषमनंगतन्त्रं |
आकेकर स्थित कनीतिकपद्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्ग शयाङ्गनायाः || ||

बाह्यन्तरे मुरजितः (मधुजितः) श्रुतकौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याणमावहतु में कमलालयायाः

कालाम्बुदालि ललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदंगनेव |
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्भद्राणि में दिशतु भार्गवनंदनायाः || ||

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत प्रभावान्मांगल्यभाजि मधुमाथिनी मन्मथेन |
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं मन्दालसं मकरालयकन्यकायाः || ||

दद्याद दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारामस्मिन्नकिञ्चन विहङ्गशिशो विषण्णे |
दुष्कर्मधर्ममपनीय चिराय दूरं नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः

इष्टाविषिश्टमतयोऽपि यया दयार्द्रदृष्टया त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते
दृष्टिः प्रहष्टकमलोदरदीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः || ||

 

गीर्देवतेति गरुड़ध्वजसुन्दरीति शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति |
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै || १० ||

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीय गुणार्णवायै |
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै || ११ ||

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै |
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै || १२ ||

 

नमोऽस्तु हेमाम्बुज पीठिकायै नमोऽस्तु भूमण्डल नयिकायै
नमोऽस्तु देवादि दयापरायै नमोऽस्तु शारङ्गयुध वल्लभायै || १३ ||

नमोऽस्तु देव्यै भृगुनन्दनायै नमोऽस्तु विष्णोरुरसि संस्थितायै
नमोऽस्तु लक्ष्म्यै कमलालयायै नमोऽस्तु दामोदरवल्लभायै || १४ ||

नमोऽस्तु कान्त्यै कमलेक्षणायै नमोऽस्तु भूत्यै भुवनप्रसूत्यै |
नमोऽस्तु देवादिभिरर्चितायै नमोऽस्तु नन्दात्मजवल्लभायै १५

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनंदनानि साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानी मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये || १६ ||

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः सेवकस्य सकलार्थसम्पदः
सन्तनोति वचनाङ्गमानसैस्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे १७

 

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यं १८

 

दिग्धस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्टस्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लु तांगीं
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेषलोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीं || १९

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वां करुणापूरतरङ्गीतैरपारङ्गैः
अवलोकयमांकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः || २० ||

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमां
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभाजिनो (भागिनो) भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः || २१ ||

सुवर्णधारास्तोत्रं यच्छंकराचार्य निर्मितं |
त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नित्यं कुबेरसमो भवेत || २२ ||

इति श्रीमद्द शंकराचार्य विरचित कनकधारा स्तोत्र सम्पूर्णं॥

 

 

मंत्र (Mantra)

जाप: प्रतिदिन 11 माला (1 माला = 108 बार) कनकधारा स्तोत्र का जाप करें। यह जाप कम से कम 9 दिन तक निरंतर करें। यदि संभव हो तो इसे आप 21 या 40 दिनों तक भी कर सकते हैं।

जाप माला : स्फटिक की माला 

महालक्ष्मी मंत्र विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए जपे जाते हैं। यहाँ कुछ प्रमुख महालक्ष्मी मंत्र दिए जा रहे हैं:

1. महालक्ष्मी बीज मंत्र

यह सबसे शक्तिशाली और प्रभावी मंत्र माना जाता है:

ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः॥

इस मंत्र का जाप करने से धन, सुख, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

2. श्री महालक्ष्मी मंत्र

ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं महालक्ष्म्यै नमः॥

यह मंत्र माँ लक्ष्मी की कृपा से भौतिक समृद्धि और मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए जपा जाता है।

3. महालक्ष्मी अष्टक मंत्र

ॐ नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते।शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते॥

इस मंत्र का जाप करते समय माँ लक्ष्मी को अपने मन, शरीर और जीवन में स्वागत किया जाता है।

4. लक्ष्मी गायत्री मंत्र

ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि।तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्॥

यह मंत्र ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए जपा जाता है।

इन मंत्रों का नित्य जाप करने से देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में धन-धान्य, सुख-समृद्धि और शांति का वास होता है।

साधना विधि और जाप संख्या:

For whom to book Puja To anyone who is looking for Growth in his Career/Business/Job
Best time to do अखंड लक्ष्मी साधना प्रयोग Any Ashtami, Chaturdashi, and Tritiya of Shukla paksha,/ Guru Pushya Nakshtra/ Pushya Nakshtra/ Friday /Thursday/Full Moon and No Moon/Navratri after taking a bath
Number of times to chant for Sidhdhi 1,25,000 Times Mantra Jaap and 1100 Stotra Recitation
Who can do अखंड लक्ष्मी साधना प्रयोग Anyone
Chant this mantra facing East In front of God Maa Lakshmi, Lord Ganesh
Best time to do अखंड लक्ष्मी साधना प्रयोग Day Time/ evening time in Abhijit Muhurt
Number of times to do अखंड लक्ष्मी साधना प्रयोग 1 Time In every 3 Months

 

निष्कर्ष

नवरात्र के पावन अवसर पर माँ लक्ष्मी की अखंड कृपा प्राप्त करने के लिए कनकधारा स्तोत्र का जाप एक अत्यंत शक्तिशाली साधना है। इस साधना को सही विधि और समय पर करने से साधक को शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। नवरात्र के दौरान यह साधना आपको मनचाही समृद्धि, सुख और ऐश्वर्य प्रदान कर सकती है।

यह कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) माता लक्ष्मी जी को समर्पित किया गया है| यह कनकधारा शब्द दो शब्द कनकम व धारा से मिलकर बना है| इसमें कनकम का अर्थ – “सोने या स्वास्थ्य” तथा धारा का अर्थ – “संभाल कर रखने वाले” से होता है| जो भी व्यक्ति कनकधारा स्त्रोत (Kanakdhara Strot) का नियमित रूप से जाप करता है|

उसके घर में सदैव ही माता लक्ष्मी जी का निवास होता है| अक्षय तृतीया के दिन माता लक्ष्मी जी की पूजा व साथ ही कनकधारा स्तोत्र (Kanakdhara Stotra) का जाप करना करना बहुत ही लाभकारी माना जाता है| इस दिन माँ लक्ष्मी जी के साथ कुबेर, भगवान गणेश तथा भगवान विष्णु की भी पूजा की जाती है|

इसी के साथ आप आर्थिक समस्या (Financial Problem) को दूर करने के आप कनकधारा पूजा के लिए www.soultherapynow.com के द्वारा किया कराया और नज़र दोष निवारण के लिए काल भैरव पूजा, सौतन से छुटकारा या कोर्ट केस में जीत के लिए माँ बगलामुखी पूजा या साधना, कार्यक्षेत्र में आ रही बढ़ाओ को काटने के लिए श्री गणेश लक्ष्मी पूजा, सौभाग्य दायक चंडी पाठ , और रुद्राभिषेक हमारी वेबसाइट से बुक करा कर घर बैठे ऑनलाइन करा सकते है।

 

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संक्षिप्त वैदिक हवन Sankshipt Vaidik Havan https://soultherapynow.com/sankshipt-vaidik-havan/ https://soultherapynow.com/sankshipt-vaidik-havan/#respond Tue, 03 Sep 2024 06:28:13 +0000 https://soultherapynow.com/?p=23201 अगर आपके काम एकदम लास्ट में आ कर किसी न किसी वजह से रुक जाते है, काम बनाते बनाते एक दम लास्ट में ही कोई न कोई विघ्न बाधा आ जाती h।  घर में शादी की बीटा या बेटी हो, और किसी न किसी वजह से उसकी शादी नहीं हो पा रही हो, पैसो की […]

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अगर आपके काम एकदम लास्ट में आ कर किसी न किसी वजह से रुक जाते है, काम बनाते बनाते एक दम लास्ट में ही कोई न कोई विघ्न बाधा आ जाती h।  घर में शादी की बीटा या बेटी हो, और किसी न किसी वजह से उसकी शादी नहीं हो पा रही हो, पैसो की दिक्कत हो, या कोई काम चल ही न रहा हो, और साथ ही में अगर आपके घर में साउथवेस्ट में कोई न कोई खराबी हो, जैसे की टॉइलट, या कोई गढ्ढा , अंडरग्राउंड वाटर टेंक या दीवार में सीलन है, तो आप समझ लीजिये की आपको पितृ दोष है।  और अमावस्या एवं सोमवती अमावस्या इस दोष से मुक्ति पाने के लिए एकदम सही समय है। यहाँ पर आपको संक्षिप्त एक वैदिक हवन की जानकारी दे रही हु, जो सिर्फ और सिर्फ १०-१५ मिनिट में पूरा हो जायेगा, जिसे आप अपने रोज़ के कामो के साथ सिर्फ आधा घंटा का टाइम निकल कर हर अमावस्या को करेंगे तो आपको बहुत अच्छा लाभ होगा।

हवन सामग्री :

  • पांच मेवा – १ पाव
  • गुड़ -१ पाव
  • घी -१/२ किलो
  • पिली सरसो – १०० ग्राम
  • कमलगट्टा – १०० ग्राम
  • काली मिर्च – १०० ग्राम
  • शहद -१०० ग्राम,
  • कपूर-१ पैकेट
  • काळा तिल- १ किलो
  • जावा /जो -१ किलो
  • चावल – १ किलो
  • गुग्गल -१०० ग्राम
  • कांडा -१ / हवन समिधा -१ पैकेट

सभी सामग्री को मिला ले, १ कटोरी घी अलग करके रख ले।  फिर मिटटी का बर्तन या  हवं कुंड या किसी तसले में कपूर से कांडा जला कर निचे लिखी हुई आहुतिया दे।

घर पर हवन करने की सरल विधि

  • हवन करने के लिए सबसे पहले एक उचित जगह पर आठ ईंटों से हवन कुंड बना लें. बाज़ार से भी बने बनाए हवन कुंड लाए जा सकते हैं.
  • हवन कुंड के पास धूप-दीप जलाएं.
  • कुंड पर स्वास्तिक बनाकर रेड धागा कलावा बांधें और फिर उसकी पूजा करें.
  • हवन कुंड में आम की लकड़ी से अग्नि प्रज्वलित करें.
  • हवन कुंड में फल, शहद, घी, काष्ठ इत्यादि पदार्थों की मंत्रों के साथ आहुति दें.
  • हवन करते समय आहुति देते समय ‘स्वाहा’ शब्द का उच्चारण करें.
  • हवन सामग्री को सिर्फ़ सोना, चांदी, पीतल, कांसे, या पत्तल में ही रखें.
  • हवन सामग्री को स्टील या लोहे के बर्तन में न रखें.
  • धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, कम से कम 108 बार आहुति देनी चाहिए.
  • हवन का मुख्य मकसद वायुमंडल को शुद्ध करना होता है

सर्वप्रथम सात मन्त्रों से सात आहुतियाँ केवल घृत की दी जाती हैं । इन आहुतियों के साथ हवन सामग्री नहीं होमी जाती । घी पिघला हुआ रहे । स्रुवा को घी में डुबाने के बाद उसका पैंदा घृत पात्र के किनारे से पोंछ लेना चाहिए, ताकि घी जमीन पर न टपके । स्वाहा उच्चारण के साथ ही आहुति दी जाए । स्रुवा लौटाते समय घृत पात्र के समीप ही रखे हुए, जल भरे प्रणीता पात्र में बचे हुए घृत की एक बूँद टपका देनी चाहिए |

१- ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये इदं न मम॥

२- ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदं इन्द्राय इदं न मम॥

३- ॐ अग्नये स्वाहा । इदं अग्नये इदं न मम॥

४- ॐ सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय इदं न मम॥

५- ॐ भूः स्वाहा । इदं अग्नये इदं न मम॥

६- ॐ भुवः स्वाहा । इदं वायवे इदं न मम॥

७- ॐ स्वः स्वाहा । इदं सूर्याय इदं न मम॥

ॐ गंगणपतये नमः स्वाहा – ११ बार

गुरु देव की आहुति

ॐ श्री गुरुवे नमः स्वाहा  , ॐ श्री परम गुरुवे नमः स्वाहा , ॐ परापर गुरुवे नमः स्वाहा – ११ बार

ग्राम देवताभ्यो नमः स्वाहा – ११ बार

क्षं क्षेत्रपालाय नमः स्वाहा  -८ बार

कुदेवी/देवता की आहुति -११ बार

ॐ पितृ देवाय नमः स्वाहा- २१ बार

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा -१०८ बार

पूर्णाहुति मंत्र

पूर्णाहुति मंत्र (Purnahuti Mantra)

ओम पूर्णमद : पूर्णमिदम् पूर्णात पुण्य मुदज्यते
पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल बिसिस्यते स्वाहा
शांतिः शांतिः शांतिः

फिर पूर्णाहुति मंत्र बोल कर हवन सम्पूर्ण करे,और विष्णु भगवन का ये हवन अपने पितरो को समर्पित करे, भगवन से प्रार्थना करे की वो उनको अपनी शरण में ले। और अपने पितरो से प्रार्थाना करे की वो हमे उन्नति का आशीर्वाद दे।
ॐ नमः इति

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Kaal Sharp Dosha Puja https://soultherapynow.com/kaal-sharp-dosha-puja/ https://soultherapynow.com/kaal-sharp-dosha-puja/#respond Fri, 05 Jul 2024 06:05:31 +0000 https://soultherapynow.com/?p=23114 In astrology, we consider Rahu, the head part of a snake, and Ketu, the tail part of the snake, as a phenomenon that governs bad deeds. Since they are head and tail parts, Ketu will always be found in the seventh house exactly from that of Rahu (considering Rahu’s house as the first). Further, except […]

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In astrology, we consider Rahu, the head part of a snake, and Ketu, the tail part of the snake, as a phenomenon that governs bad deeds. Since they are head and tail parts, Ketu will always be found in the seventh house exactly from that of Rahu (considering Rahu’s house as the first). Further, except Rahu and Ketu, all other planets are considered moving in clockwise direction.

If you happen to see Rahu first, and having Ketu in the seventh house, with all other planets between them, in counterclockwise direction, it’s considered as Kaal Sarp Dosha.

I have seen very bad effects of Kaal Sarp Dosha in individual’s life. They struggle a lot in their personal as well as professional Life. They can be easily affected by the evil eye. I have seen Mother or Father, or Elder Brother/Sister’s having short lifespans,one who have Kaal Sarp Dosha in his chart. Hence they become more mature at an early age.

Nag Dosha Due to Murdering of Unborn Child:

One more important observation, I would like to discuss here, is that if any couple has doing abortion, they will definitely suffer from Sarp Dosha. The only remedy of this kind of Dosha is to give birth to the second child, and do Rudrabhishekam, and Shri Vishnu Sahatranaam Abhishekam and Hawan for at least 5-10 years on a quarterly basis for this kind of worst sin.

Similarities of Kaala Sarpa Yog:

  • Many Yogas [combinations] in Jyotish give results similar to those attributed to Kaala Sarpa Yoga :
  • If Lagna or Chandra is in the Nakshatra of Rahu or Ketu (Ardra, Swati, Shatabhisha, Ashwini, Magha, Muula).
  • If Rahu is with ShaniMangala, or Chandra.
  • If LagneshPanchamesha, or Saptamesha is associated with Rahu.
  • If there are a lot of retrograde Grahas in the chart.
  • If Rahu occupies the 8th Bhava from Lagna (especially in conjunction with Shani).
  • If Rahu is in Lagna, 2nd, 5th, 7th or 8th Bhava.

Book Kaal Sharp Dosha Nivaran Puja

Results of Kaala Sarpa-Dosh

Rahu:

Slow development of consciousness/”I”/understanding of one’s nature (1st Bhava).

Problems in the parents’ family (2nd Bhava).

Loss of wealth (2nd Bhava).

Painful Perception, distorted/improper [Re]nutrition (2nd Bhava).

Problems with assistants or younger friends (3rd Bhava).

Difficulties in the area of ​​Effort/Expression/Brothers (3rd Bhava).

Lack of Happiness/Inner Peace/Satisfaction (4th Bhava).

Loss of property/real estate (4th Bhava).

Problematic or painful sphere of the Native/Close (4th Bhava).

Slow development of intellect (5th Bhava).

Children resist their parents or leave home [for example with a lover] (5th Bhava).

Probability of abortion, children with deficiency or few spermatozoa (5th Bhava).

Diseases, cancer, kidney stones, weakness of the liver or pancreas (6th Bhava).

Frequent hospitalization/illness or dependence/need for medication (6th Bhava).

Unsuccessful/late marriage or refusal of marriage/weirdness/“asexuality/ homosexuality ” (7th Bhava).

Problems in business (7th Bhava).

Danger of accidents (8th Bhava).

Problems with/due to inheritance, dishonest inheritance, or litigation (8th Bhava).

Sleep with nightmares or dark magic/occultism/disturbances from evil spirits (8th Bhava).

Strange or passionate sexuality (8th Bhava).

Distortion in the understanding of Values ​​(9th Bhava).

Ignorance of statuses or non-compliance with them (10th Bhava).

Problems with elders, sponsors, or elder friends (11th Bhava).

Obstacles or absence in the sphere of receiving (11th Bhava).

Hard losses (12th Bhava).

Illusions in sacrifice, and suffering associated with giving/loss (12th Bhava).

Ketu (like Rahu) gives problems in the form of ambiguity, confuses or completely deprives the possibility of manifestation:

Domain of Marriage/Relationships (7th Bhava).

Sphere of Inheritance (8th Bhava).

Sphere of Values ​​(9th Bhava).

Sphere of Status/Position (10th Bhava).

Sphere of Receiving (11th Bhava).

Sphere of Giving (12th Bhava).

Sphere of Innate Nature/Consciousness/Self (1st Bhava).

Sphere of Perception/[Nurturing] (2nd Bhava).

Sphere of Effort/Expression/Brothers (3rd Bhava).

Sphere of Happiness/Family/Close/Real Estate (4th Bhava).

Sphere of Children/Intellect (5th Bhava).

Sphere of Diseases/Obstacles/Fortitude (6th Bhava).

Remedies of Kaal Sarp Dosha:

There are three steps to subsidise the effect of Kaal Sarp Dosha. One is to recite Durga Saptashati Path, and Hawan, which is commonly known as Shri Chandi Path, at home or any SidhdhPith or Shiv Lingam, along with Rudrabhishekam, and Shri Vishnu Sahastranaam Path and Abhishekam. One should do this Anushthan in every 3-4 Months to get relief and blessing from the God. You have to perform it for 5-10 Years, if you have done an abortion.

Rudrabhishekam is one of the most simplest way to please Lord Shiva, who is also the Lord of Snakes.

Rudrabhishek with Milk, Yogurt, Honey, Basm, and various herbs along with Ganga Jal is a form of worshipping Lord Shiva in his Rudra avatar, in which a Shivalinga is bathed with all above ingredients constantly poured over the deity, along with chanting of Vedic mantra called the Rudra Sukta also referred to as Rudri Paath. Rudri Paath is a set of 8 chapters of Vedic shloka/mantras, together known as Rudrashtdhyayi.

People who can not recite Rudrabhishek, can do Abhishek in their home, by reading the Rudrashtakam Stotram.

यदि कोई साधक रामचरित मानस के इस स्तोत्र को आत्म भक्ति के साथ भगवान शिव का ध्यान करते हुए पाठ करता है, तो उस पर भगवान शिव की कृपा होगी। यह स्तोत्र तुरंत कंठस्थ हो जाता है। यह प्रसिद्ध रुद्राष्टक शिव को प्रसन्न करने के लिए जल्दी फल देगा।

||ओम||

नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्
निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्

निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्
करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्

तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्
स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥

चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्
मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि

प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्
त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्

कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।
चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी

यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्
तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं

जानामि योगं जपं नैव पूजा, तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्
जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो

रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।

॥ इति श्रीगोस्वामितुलसीदासकृतं श्रीरुद्राष्टकं सम्पूर्णम् ॥

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Lakshmi Prapti & Shri Ganesh Puja for Debt Relief & Create a Wealthy Fortune https://soultherapynow.com/lakshmi-prapti-shri-ganesh-puja-for-debt-relief-create-a-wealthy-fortune/ https://soultherapynow.com/lakshmi-prapti-shri-ganesh-puja-for-debt-relief-create-a-wealthy-fortune/#respond Thu, 04 Jul 2024 09:39:24 +0000 https://soultherapynow.com/?p=23058 माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष के साथ श्री सूक्त का पाठ एवं होम करने से घर में कभी भी लक्ष्मी की कमी नहीं होती है। गणपति अर्थवशीर्ष पाठ ब्लॉग में दिया गया है | श्री सूक्त ¬ हिरण्यवर्णामिति पंषदषर्चस्य सूक्तस्य, श्री आनन्द, कर्दमचिक्लीत, इन्दिरासुता महाऋषयः। श्रीरग्निदेवता। आद्यस्तिस्तोनुष्टुभः चतुर्थी वृहती। […]

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माँ लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रतिदिन गणपति अथर्वशीर्ष के साथ श्री सूक्त का पाठ एवं होम करने से घर में कभी भी लक्ष्मी की कमी नहीं होती है। गणपति अर्थवशीर्ष पाठ ब्लॉग में दिया गया है |

श्री सूक्त

¬ हिरण्यवर्णामिति पंषदषर्चस्य सूक्तस्य,

श्री आनन्द, कर्दमचिक्लीत, इन्दिरासुता महाऋषयः।

श्रीरग्निदेवता। आद्यस्तिस्तोनुष्टुभः चतुर्थी वृहती।

पंचमी षष्ठ्यो त्रिष्टुभो,

ततो अष्टावनुष्टुभः अन्त्याः प्रस्तारपंक्तिः।

हिरण्यवर्णमिति बीजं,

ताम् आवह जातवेद इति शक्तिः,

कीर्ति ऋद्धि ददातु में इति कीलकम्।

श्री महालक्ष्मी प्रसाद सिद्धयर्थे जपे विनियोगः।

(जल भूमि पर छोड़ दें।)

अर्थ इस पंद्रह ऋचाओं वाले श्री सूक्त के कर्दम और चिक्लीत ऋषि हैं अर्थात् प्रथम तंत्र की इंदिरा ऋषि है, आनंद कर्दम और चिक्लीत इंदिरा पंुज है और शेष चैदह मंत्रों के द्रष्टा हैं। प्रथम तीन ऋचाओं का अनुष्टुप, चतुर्थ ऋचा का वहती, पंचम व षष्ठ ऋचा का त्रिष्टुप एवं सातवीं से चैदहवीं ऋचा का अनुष्टुप् छंद है। पंद्रह व सोलहवीं ऋचा का प्रसार भक्ति छंद है। श्री और अग्नि देवता हैं। ’हिरण्यवर्णा’ प्रथम ऋचा बीज और ’कां सोस्मितां’ चतुर्थ ऋचा शक्ति है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति के लिए विनियोग है। (हाथ जोड़ कर लक्ष्मी जी एवं विष्णु जी का ध्यान करें।) गुलाबी कमल दल पर बैठी हुई, पराग राशि के समान पीतवर्णा, हाथों में कमल पुष्प धारण किए हुए, मणियों युक्त अलंकारों को धारण किए हुए, समस्त लोकों की जननी श्री महालक्ष्मी की हम वंदना करते हैं।

श्री सूक्त का पाठ ¬ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवण्र् ारजतस्रजाम्।

चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो वह।।

अर्थ– जो स्वर्ण सी कांतिमयी है, जो मन की दरिद्रता हरती है, जो स्वर्ण रजत की मालाओं से सुशोभित है, चंद्रमा के सदृश प्रकाशमान तथा प्रसन्न करने वाली है, हे जातवेदा अग्निदेव ऐसी देवी लक्ष्मी को मेरे घर बुलाएं।

महत्व– स्वर्ण रजत की प्राप्ति होती है।

तांम आवह जातवेदो लक्ष्मी मनपगामिनीम्।

यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामष्वं पुरुषानहम्।।

अर्थ– हे जातवेदा अग्निदेव। आप उन जगत् प्रसिद्ध लक्ष्मी जी को मेरे लिए बुलाएं जिनका आवाहन करने पर मैं स्वर्ण, गौ, अश्व और भाई, बांधव, पुत्र, पौत्र आदि को प्राप्त करूं।

महत्त्व गौ, अश्व आदि की प्राप्ति होती है।

अष्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनाद प्रमोदिनीम्।

श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम्।।

अर्थ– जिस देवी के आगे घोड़े और मध्य में रथ है अथवा जिसके सम्मुख घोड़े रथ में जुते हुए हैं, ऐसे रथ में बैठी हुई हाथियों के निनाद से विश्व को प्रफुल्लित करने वाली देदीप्यमान एवं समस्त जनों को आश्रय देने वाली लक्ष्मी को मैं अपने सम्मख्ु बलु ाता ह।ंू दप्े यमान लक्ष्मी मरे घर में सर्वदा निवास करें। महत्वरत्नों की प्राप्ति होती है।

कांसोस्मितां हिरण्यप्राकारामाद्र्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।

पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम्।।

अर्थ आपका क्या कहना। मुखारविंद मंदमंद मुस्काता है, आपका स्वरूप अवर्णनीय है, आप चारों ओर से स्वर्ण से ओत प्रोत हैं और दया से आर्द्र हृदया अथवा समुद्र से उत्पन्न आर्द्र शरीर से युक्त देदीप्यमान हैं। भक्तों के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली, कमल के ऊपर विराजमान, कमल सदृश गृह में निवास करने वाली प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने पास बुलाता हूं।

महत्व– मां लक्ष्मी की दया एवं संपत्ति की प्राप्ति होती है।

चन्द्रां प्रभासां यषसां ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम्।

तां पद्मिनीमीं शरणं प्रपद्येअलक्ष्मीर्में नष्यतां त्वां वृणे।।

अर्थ– चंद्रमा के समान प्रभा वाली, अपनी कीर्ति से देदीप्यमान, स्वर्गलोक में इंद्रादि देवों से पूजित अत्यंत उदार कमल के मध्य रहने वाली, आश्रयदात्री आपकी मंै शरण में आता हूं। आपकी कृपा से मेरी दरिद्रता नष्ट हो।

महत्व– दरिद्रता का नाश होता है।

आदित्यवर्णे तपसोधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथबिल्वः।

तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याष्च बाह्या अलक्ष्मीः।।

अर्थ हे सूर्य के समान कांति वाली, आपके तेज से ये वन पादप प्रकट हैं। आपके तेज से यह बिना पुष्प के फल देने वाला बिल्व वृक्ष उत्पन्न हुआ। उसी प्रकार आप अपने तेज से मेरी बाहृय और आभ्यंतर की दरिद्रता को नष्ट करें।

महत्व– श्री सूक्त का पाठ करने से अलक्ष्मी का पूर्ण रूप से परिहार होता है।

उपैतु मां देवसखः कीर्तिष्च मणिना सह।

प्रादुर्भूतोस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धि ददातु मे।।

अर्थ– हे लक्ष्मी। देवसखा अर्थात् श्री महादेव के सखा इंद्र के समान मणियां, संपत्ति और कीर्ति मुझे प्राप्त हो (मतांतर सेमण्णिभद्र (कुबेर के मित्र) के साथ कीर्ति अर्थात् यश मुझे प्राप्त हो) मैं इस विश्व में उत्पन्न हुआ हूं इसमें मुझे कीर्तिसमृद्धि प्रदान कर गौरवान्वित करें।

महत्व– श्री सूक्त का पाठ करने से यश और कीर्ति प्राप्त होती है।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाषयाम्यहम्।

अभूतिमसमृद्धिं सर्वां निर्णुद मे गृहात्।।

अर्थ भूख और प्यास रूपी मैल को घारण करने वाली ज्येष्ठ भगिनी अलक्ष्मी को मंै नष्ट करता हूं। हे लक्ष्मी। आप मेरे घर से अनैश्वर्य, वैभवहीनता तथा धन वृद्धि के प्रतिबंधक विघ्नों को दूर करें।

महत्व– श्री सूक्त का पाठ करने से परिवार की दरिद्रता दूर होती है।

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिण् ाीम्

ईष्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम्।।

अर्थ सुगंधित पुष्प के समर्पण से प्राप्त करने योग्य, किसी से भी दबने योग्य धन धान्य से सर्वदा पूर्ण कर समृद्धि देने, वाली, समस्त प्राणियों की स्वामिनी तथा संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने घर में सादर बुलाता हूं।

महत्व श्री सूक्त का पाठ करने मात्र से लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और विपुल धन प्राप्त होता है।

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमषीमहि।

पषूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः।।

अर्थ– हे मां लक्ष्मी। आपके दिव्य प्रभाव से मैं मानसिक इच्छा एवं संकल्प, वाणी की सत्यता, गौ आदि पशुओं के रूप (अर्थात् दुग्धदध्यादि) एवं अन्नों के रूप (अर्थात भक्ष्य, भोज्य, चोस्य, लेह्यचारों प्रकार के भोज्य पदार्थ) इन सभी को प्राप्त करूं। संपत्ति और यश मुझमें आश्रय लें अर्थात मैं लक्ष्मीवान् और कीर्तिवान बनूं।

महत्व– श्री सूक्त का पाठ करने से मानसिक स्थिरता, वाणी की दृढ़ता, अन्न, धन, यश, मान की प्राप्ति हो परिवार में कलह तथा दरिद्रता दूर होती है। कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम। श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम्।।

अर्थ ’कर्दमनामक ऋषि पुत्र से लक्ष्मी प्रकृष्ट पुत्र वाली हुई हैं। हे कर्दम, तुम मुझमें निवास करो तथा कमल की माला धारण करने वाली माता लक्ष्मी को मेरे कुल में निवास कराओ।

महत्व– श्री सूक्त का पाठ करने से संपूर्ण संपत्ति की प्राप्ति होती है।

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे।

नि देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले।।

अर्थ– जल के देवता वरुण स्निग्ध अर्थात मनोहर पदार्थों को उत्पन्न करें। लक्ष्मी के आनंद, कर्दम, चिक्लीत और श्रीत ये चार पुत्र हैं। इनमें से चिक्लीत से प्रार्थना की गई है कि हे चिक्लीत नामक लक्ष्मी पुत्र। तुम मेरे गृह में निवास करो। दिव्य गुणयुक्ता सर्वाश्रयमुता अपनी माता लक्ष्मी को भी मेरे घर में निवास कराओ।

महत्व श्री सूक्त का पाठ करने से धन धान्य आदि की प्राप्ति होती है।

आद्र्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिड्गलां पद्ममालिनीम्।

चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो वह।। (13)

अर्थ हे अग्निदेव। तुम मेरे घर में पुष्करिणी अर्थात् दिग्गजों (हाथियों) के शुण्डाग्र से अभिशिच्यमाना (आर्द्र शरीर वाली), पुष्टि देने वाली, पीतवण्र् वाली, कमल की माला धारण करने वाली, जगत को प्रकाशित करने वाली प्रकाश स्वरूपा लक्ष्मी को बुलाओ।

महत्व– श्री सूक्त का पाठ करने से पशु, पुत्र एवं बंधु बांधवों की स्मृद्धि होती है।

आद्र्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम्।

सूर्यां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं जातवेदो वह।।

अर्थ– हे अग्निदेव। तुम मेरे घर में भक्तों पर सदा दर्यार्द्रचित्त अथवा समस्त भुवन जिसकी याचना करते हैं, दुष्टों को दंड देने वाली अथवा यष्टिवत् अवलंबनीया (जिस प्रकार असमर्थ पुरुष को लकड़ी का सहारा चाहिए उसी प्रकार लक्ष्मी जी के सहारे से अशक्त व्यक्ति भी संपन्न हो जाता है), सुंदर वर्ण वाली एवं स्वर्ण की माला वाली सूर्यरूपा, ऐसी प्रकाश स्वरूपा लक्ष्मी को बुलाओ।

महत्व– श्री सूक्त का पाठ करने से स्वर्ण, संपत्ति एवं वंश की वृद्धि होती है।

तांम आवह जातवेदो लक्ष्मी मन पगामिनीम्,

यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् बिन्देयं पुषानहम्।।।

अर्थ हे अग्निदेव। तुम मेरे यहां उन विश्वविख्यात लक्ष्मी को, जो मुझे छोड़कर अन्यत्र जाने वाली हों, बुलाओ। जिन लक्ष्मी के द्वारा मैं स्वर्ण, उत्तम ऐश्वर्य, गौ, घोड़े और पुत्र पौत्रादि को प्राप्त करूं।

महत्व– श्री सूक्त का पाठ करने से देष, ग्राम, भूमि अर्थातअचल संपत्ति की प्राप्ति होती है।

यः शुचिः प्रयतः भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम्।।

सूक्तं पंचदषर्चं श्री कामः सततं जपेत्।।

अर्थ– जो मनुष्य लक्ष्मी की कामना करता हो वह पवित्र और सावधान होकर अग्नि में गोघृत का हवन और साथ ही श्री सूक्त की पंद्रह ऋचाओं का प्रतिदिन पाठ करे।

महत्व जो भी प्राणी लक्ष्मी प्राप्ति की कामना से प्रतिदिन श्री सूक्त की पंद्रह ऋचाओं के द्वारा हवन करता है।

Book Shri Ganesh and Lakshmi Prapti Puja

Book Maa Laxshmi & Shri Ganesh Puja for Business Growth

Book Maa Laxshmi & Shri Ganesh Puja for Debt Relief

Book Maa Laxshmi & Shri Ganesh Puja for Getting a Dream Job

Don’t Miss: Kaal Bhairav Puja To Win in Legal Issues, Protect and Destroy Negative Energy, Destroy Enemies

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Navagraha Shanti Puja & Homa https://soultherapynow.com/navagraha-shanti-puja-homa/ https://soultherapynow.com/navagraha-shanti-puja-homa/#respond Wed, 03 Jul 2024 05:42:19 +0000 https://soultherapynow.com/?p=23107 Nav Grah Homa/Grah Balance Puja refers to the practice of performing rituals or ceremonies to harmonize and balance the celestial bodies or planets in astrology. Puja for Grah, also known as Puja for Grah Shanti, is a ritualistic ceremony conducted to restore equilibrium and mitigate the negative influence of celestial bodies in one’s horoscope. Soul […]

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Nav Grah Homa/Grah Balance Puja refers to the practice of performing rituals or ceremonies to harmonize and balance the celestial bodies or planets in astrology. Puja for Grah, also known as Puja for Grah Shanti, is a ritualistic ceremony conducted to restore equilibrium and mitigate the negative influence of celestial bodies in one’s horoscope. Soul Therapy Now offers a comprehensive range of Hawan/Puja rituals to address various sorts of Doshas.

It is important to understand that doing a Planet Dosha elimination pooja just once in your lifetime would not provide the desired outcomes as planned. You must make serious efforts (karma) along with Puja/Hawan. The impact of a one-time hawan will last for a duration of 3 to 4 months. It is recommended that you do a Hawan every 3 months for optimal outcomes. For optimal outcomes, it is advisable to bathe in the nearby Holi River before doing the Puja.

The procedure of this homa is by invoking and praying particular Graha and his favourable Devata and followed by the chanting of Mantra and then performing this homa as per the Shastras and Vidhana.

Book Navagraha Shanti Puja & Homa

Following are the generally anyone or combination of Doshas maybe seen in anyone’s Chart:

  • Kaal Sarp Dosha
  • Mangal/Kuj Dosha/Bhauma Dosha
  • Chandra Grahan/Chandra Dosha/Chandra Rahu Yuti/ Chandra Shani Yuti/Chandra Ketu/ Chandra Surya Yuti
  • Shani Sadhesati/Shani Mahadasha
  • Surya Mahadasha
  • Guru Chandal Yog Puja/Guru Rahu Yuti
  • Shukra Rahu Yog
  • Hawan for those who born on Amavasya/Poornima
  • Hawan/Puja for Gand Moola Nakshatra

Where to perform Hawan and Puja:  We perform this Puja in Haridwar near Ganga River and in the Temple.

Benefits of Graha Dosh Mukti Homa and Puja:

  • Grah Balance hawan may help in overcoming the Graha dosha present in the horoscope and having a blissful life.
  • It prevents misfortune and bad luck from occurring.
  • It will not cure any type of health problems, financial troubles, and suffering, however, it may delay any illness, or you may recover fast from any illness, reduces one’s long time suffering, may give you a new source of income, or you may get your pending or delayed payment, or can get a Job, or promotions and
  • This hawan helps to gain more knowledge and wisdom. Boosts career life and helps a person to succeed professionally, may show you the right path in life.

Types of Graha Dosh Mukti Homa and Puja:

Kaal Sarp Dosha Mukti Puja and Hawan-

Key Features of Kaal Sarp Dosha:

There will be lots of obstacles in once life, if the person is having Kaal Sarp Dosha in his chart. His/her Mother/Father or Elder Mother-father type person (like an Elder Brother/Sister) may experience a short life span. The person who has this dosha in his chart may suffer from evil eye/black magic/any noncurable severe disease in his life. One should always do Rudhraabhishekam in every 3 months along with Shri Durga Saptashati Hawan and Shri Vishnu Sahastranaam Path/Abhishekam Anushthanam as per his convenience for the protection of himself and his family or his children if they have Kaal Sarp Dosha in the Birth Chart to reduce the ill effects of this Dosha.

Kaal Sarp Dosha Mukti Puja and Hawan – In this ritual, our expert Pandit ji will do Naag Puja along with Rudrabhikesham to please Lord Shiva in Haridwar. Our vedic scripts state that Lord Shankar is the Supreme God for snakes. And Kaal Sarp Puja is offered to snakes only. So by pleasing Lord Shiva, one can reduce bad effects of Kaal Sarp Dosha.  Chandra Grahan/Chandra Dosha/Chandra Rahu Yuti/ Chandra Shani Yuti/Chandra Ketu/ Chandra Surya Yuti.

  • Mangal/Kuj Dosha/Bhauma Dosha Mukti and Hawan
  • Shani Sadhesati/Shani Mahadasha
  • Surya Mahadasha
  • Guru Chandal Yog Puja/Guru Rahu Yuti
  • Shukra Rahu Yog
  • Hawan for those who born on Amavasya/Poornima
  • Hawan/Puja for Gand Moola Nakshatra

Why to perform Hawan and Puja in Haridwar?

Haridwar is renowned as one of the most spiritually significant cities in India. Those who visit Haridwar may experience profound tranquility and bliss. Each location has its own unique energy. Haridwar, Rishikesh, and Varanasi are renowned destinations for conducting sacred rituals and ceremonies, making them very significant and potent. We conduct our religious rituals, known as Puja and Hawan, at both Haridwar and Delhi, based on the availability of time slots in the Temple.

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Shri Durga Saptashati Chandi Path to Clear Your Karmic Account https://soultherapynow.com/shri-durga-saptashati-chandi-path-to-clear-your-karmic-account/ https://soultherapynow.com/shri-durga-saptashati-chandi-path-to-clear-your-karmic-account/#respond Tue, 02 Jul 2024 05:00:18 +0000 https://soultherapynow.com/?p=23095 According to Sanatan Dharma, Durga Saptashati is considered a very sacred religious text related to Maa Durga, the Goddess of Power, Devotion and Prosperity. In such a situation, just by reciting this sacred text with full dedication, the native attains the blessings of Maa Durga, which not only fulfils all your wishes but also helps […]

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According to Sanatan Dharma, Durga Saptashati is considered a very sacred religious text related to Maa Durga, the Goddess of Power, Devotion and Prosperity. In such a situation, just by reciting this sacred text with full dedication, the native attains the blessings of Maa Durga, which not only fulfils all your wishes but also helps get rid of all the enemies of your family. It is believed that whoever recites the Durga Saptashati Path attains happiness and prosperity in family life and witness an improvement in personal and professional relationships. Therefore, if any family member is experience some kind of troubles, evil eye, obstacles and health problems, then the recitation of Durga Saptashati Path proves to be very miraculous. This ritual is performed by a scholar or a qualified pandit in a day. In this duration, one complete recitation of Shri Durga Saptashati will be carried out.

Expert Tip: To get smoothness and harmony in life and relationships, one can perform Durga Saptashati Hawan along with Shri Vishnu Sahastranam Path Puja every 3 months to experience the magic in their own life.

Book Shri Durga Saptashati Chandi Path

How many times one can chant Durga Saptashati

According to Devi Mahatmyam:

  • Three Times- to get rid of effect of black magic,
  • Five Times – to get rid of difficulties caused by planets
  • Seven Times – to get rid of any severe problem in life
  • Nine times- achieve peace
  • Eleven times- to get over fear of death, attention of king
  • Sixteen times- to get sons and grand sons
  • Seventeen times- to get rid of the fear from King, removing competition
  • Twenty one times- getting desires fulfilled and destruction of enemies,
  • 100 Times (शतचंडी) – to get out from prison, any legal case/ pleasant life and obtain immense wealth/overcome misfortune
  • 1000 times (सहत्र चंडी )- to overcome from any Paap karma/Sin/Overcome from any natural calamities/ To Please the Mother Durga/ to get occult powers

Benefits of Durga Saptashati Chandi Path

  • Get Rid of Obstacles in Life:: Through Durga Saptashati Chandi Path, Get Riddance From Obstacles In Your Family Life.
  • Overall Health, Wealth and Longevity: With Durga Saptashati Chandi Path, All Family Members Will Attain Freedom From Physical And Mental Problems, and get overall good health, wealth and longevity.
  • Accurate Remedy for Markesh/any Bad Planet in-house/Dasha/Mahadasha: Durga Saptashati Chandi Path Is The Most Accurate Way get rid of all bad effects causing from all/any planets in anyone’s chart. The planetary influences are voided by performing this path. It reduces the malefic effects of the misplaced planets in the horoscope. To get best results, one can do Chandi Hawan, along with Shri Vishnusahatranam Puja in every 3 months.
  • For Childless Couples: Maa Durga is the mother of all of us. By worshipping the mother Durga she may bless a childless couple with child and longevity.
  • For Job/Promotion/Transfer/Marriage
  • For removing Evil Eye/ ऊपरी बाधा

When To Perform This Durga Saptashati Path?

Navratri, Shukla Paksha Tritiya, Saptami, Ashtami, Fridays, or any auspicious days compatible with Janma Nakshatra of a person, Full Moon and on No Moon, and on Eclipse.

Sapta Shloki Durga Stotra

Those who can not read Durga Saptashati Daily, can read this seven shlokas, it’s the summery of Shri Durga Saptashati, known as Sapta Shloki Durga Stotra.

॥ अथ सप्तश्लोकी दुर्गा ॥

शिव उवाच:

देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिद्ध्यर्थमुपायं ब्रूहि यत्नतः ॥

देव्युवाच:

शृणु देव प्रवक्ष्यामि कलौ सर्वेष्टसाधनम् ।
मया तवैव स्नेहेनाप्यम्बास्तुतिः प्रकाश्यते ॥

विनियोग:

ॐ अस्य श्री दुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्य नारायण ऋषिः, अनुष्टुप छन्दः, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, श्रीदुर्गाप्रीत्यर्थं सप्तश्लोकीदुर्गापाठे विनियोगः ।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हिसा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ॥1॥

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ॥2॥

सर्वमंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते ॥3॥

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥4॥

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते ॥5॥

रोगानशोषानपहंसि तुष्टा रूष्टा
तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌ ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति ॥6॥

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्र्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌ ॥7॥

॥ इति श्रीसप्तश्लोकी दुर्गा संपूर्णम्‌ ॥

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Katyayini Puja For Marriage of a Girl & Boy https://soultherapynow.com/katyayini-puja-for-marriage-of-a-girl-boy/ https://soultherapynow.com/katyayini-puja-for-marriage-of-a-girl-boy/#respond Sun, 30 Jun 2024 12:07:19 +0000 https://soultherapynow.com/?p=23088 One of the most important things in everyone’s life is getting married. We always picture a safe and happy married life. We’ve seen times when things just don’t work out for us, no matter how hard we try. There have been times when we saw a friend who doesn’t look good or make a lot […]

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One of the most important things in everyone’s life is getting married. We always picture a safe and happy married life. We’ve seen times when things just don’t work out for us, no matter how hard we try. There have been times when we saw a friend who doesn’t look good or make a lot of money get married to a beautiful woman and live a very beautiful life.

Why do we need God if everything goes well? And it’s true that love and marriage are made in heaven. And it’s true that when no one else can ease your pain, only God can take it away and give you a life full of happiness.

Book Puja For Marriage of a Girl & Boy

ध्यान:

गीर्वाणसंधार्चितपाद पंकजारूण् ाप्रभा बाल शशांक शेखरा।

रक्ताम्बरा लेपन पुष्पयुंग मुदे सृणिं सपाशं दधतीं शिवास्तु नः।।

विनियोगः

अस्य श्री मंगला गौरि मन्त्रस्य अजऋषिः

गायत्री छन्दः श्री मंगलागौरि देवता ह्रीं बीजं स्वाहा

शक्तिः ममाभीष्टं सिद्धये जपे विनियोगः।

ऋष्यादि न्यास ¬ अजाय ऋषये नमः, शिरसि।

गायत्री छन्दसे नमः, मुखे।

मंगला गौरि देवतायै नमः, हृदि।

ह्रीं बीजाय नमः, गुह्ये।

स्वाहा शक्तये नमः, पादयोः।

करन्यास ¬ अंगुष्ठाभ्यां नमः।

ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः।

मंगले गौरि मध्यमाभ्यां नमः।

विवाहबाधां अनामिकाभ्यां नमः।

नाशय कनिष्ठिकाभ्यां नमः।

स्वाहा करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

अंगन्यास ¬ हृदयाय नमः।

ह्रीं शिरसे स्वाहा।

मंगले गौरि शिखायै वषट्।

विवाह बाधां कवचाय हुम्।

नाशय नेत्रत्रयाय वौषट्।

स्वाहा अस्त्राय फट्।

Mangla Gauri Stotram (मंगला गौरी स्तोत्र)

ॐ रक्ष-रक्ष जगन्माते देवि मङ्गल चण्डिके । हारिके विपदार्राशे हर्षमंगल कारिके ॥

हर्षमंगल दक्षे च हर्षमंगल दायिके । शुभेमंगल दक्षे च शुभेमंगल चंडिके ॥

मंगले मंगलार्हे च सर्वमंगल मंगले । सता मंगल दे देवि सर्वेषां मंगलालये ॥

पूज्ये मंगलवारे च मंगलाभिष्ट देवते । पूज्ये मंगल भूपस्य मनुवंशस्य संततम् ॥

मंगला धिस्ठात देवि मंगलाञ्च मंगले। संसार मंगलाधारे पारे च सर्वकर्मणाम् ॥

देव्याश्च मंगलंस्तोत्रं यः श्रृणोति समाहितः। प्रति मंगलवारे च पूज्ये मंगल सुख-प्रदे ॥

तन्मंगलं भवेतस्य न भवेन्तद्-मंगलम् । वर्धते पुत्र-पौत्रश्च मंगलञ्च दिने-दिने ॥

मामरक्ष रक्ष-रक्ष ॐ मंगल मंगले ।

॥ इति मंगलागौरी स्तोत्रं सम्पूर्णं ॥

श्री मंगला गौरी मंत्र¬ ह्रीं मंगले गौरि विवाहबाधां नाशय स्वाहा।

Katyayini Puja For Marriage of a Girl & Boy for those who don’t have horoscope/birth chart

In the course of everyone’s life, getting married is seen as one of the most significant events. Constantly, we see a secure and joyful existence as a married couple. We have experienced situations in which, despite our best efforts, things do not turn out the way we would want them to. Also there are several remedies, in astrology, which we can perform based on our horoscope. But what to do if we don’t have our horoscope, or our birth details are wrong, or missing. In that situation, Katyayani Mantra is useful for resolving the issue of delayed marriage.

It is also claimed that Katyayani Mantra has the ability to eliminate the Kuja or Mangal Dosha from the birth horoscope. Manglik Dosha not only delays marriage but also causes several issues in a happily married life. Married couples may also benefit from daily chanting of the Katyayani Mantra to guarantee happiness and tranquility in their marriage and to have a child soon.

When should one perform Katyayani Puja:-

  • When a girl or boy is not getting married easily or timely.
  • When the girl or boy is having Manglik Dosha.
  • When the horoscopes of boy and girl are not matching.

Story of Devi Katyayini:

Goddess Durga has six different forms. The sixth is Devi Katyayani. She was born to a Rishi named Katyi and was named Katyayani. Girls who are not married worship her to find a good husband and get rid of the mangalik dosha. Her power is said to be over Mars. So honoring her makes Mars happy too. Katyayani Vrata is done in any lucky month, not just the month of Margasira. The Gopis did this Vrata in the Dwapara Yuga to get married to Krishna. This Vrata was also done by Mata Rukmini to get Lord Krishna to marry her.

Here is the mantra of Katyayani to get good spouse:

श्री महाभागवत पुराण के अन्तर्गत श्रीराम जी द्वारा कात्यायनी माता की स्तुति की गयी है | जो मनुष्य प्रतिदिन इस कात्यायनी स्तुति का पाठ करता है, उसके जीवन में आने वाली सभी विघ्न बाधाएँ दूर होती हैं, एवम् सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं | कात्यायनी स्तोत्र का पाठ करने से से कन्याओं को मनोभिलसित वर की प्राप्ति होती है |

स्तुति :- 

श्रीराम उवाच

नमस्ते त्रिजगद्वन्द्ये संग्रामे जयदायिनि
प्रसीद विजयं देहि कात्यायनि नमोऽस्तु ते ॥१॥

श्रीरामचन्द्र जी बोले- त्रिलोकवन्दनीया ! युद्ध में विजय देने वाली ! कात्यायनी ! आपको बार-बार नमस्कार है | आप मुझ पर प्रसन्न हों, और मुझे विजय प्रदान करें |

        सर्वशक्तिमये दुष्टरिपुनिग्रहकारिणि
दुष्टजृम्भिणि संग्रामे जयं देहि नमोऽस्तु ते

सर्वशक्तिमयी, दुष्ट शत्रुओं का निग्रह करने वाली, दुष्टों का संहार करने वाली भगवती ! संग्राम में मुझे विजय प्रदान करें , आपको नमस्कार है |

        त्वमेका परमा शक्तिः सर्वभूतेष्ववस्थिता
दुष्टं संहर संग्रामे जयं देहि नमोऽस्तु ते

आप ही सभी प्राणियों में निवास करने वाली पराशक्ति हैं, संग्राम में दुष्ट राक्षस का संहार करें, और मुझे विजय प्रदान करें | आपको नमस्कार है |

   रणप्रिये रक्तभक्षे मांसभक्षणकारिणि
प्रपन्नार्तिहरे युद्धे जयं देहि नमोऽस्तु ते  

युद्धप्रिये ! शरणागत की पीड़ा हरने वाली ! तथा {रक्षासों} का रक्त एवम् मॉस भक्षण करने वाली [जगदम्बे !] युद्ध में मुझे विजय प्रदान करें, आपको नमस्कार है |

        खट्वाङ्गासिकरे मुण्डमालाद्योतितविग्रहे
ये त्वां स्मरन्ति दुर्गेषु तेषां दुःखहरा भव॥५॥

हाथ में खट्वांग तथा खड्ग धारण करने वाली एवम् मुण्डमाला से सुशोभित विग्रह वाली भगवती ! विषम परिस्थितियों में जो आपका स्मरण करते हैं, उनका दुःख हरण कीजिये |     

        त्वत्पादपङ्कजादैन्यं नमस्ते शरणप्रिये  
विनाशय रणे शत्रून् जयं देहि नमोऽस्तु ते॥

शरणागतप्रिये ! आप अपने चरणकमल के अनुग्रह से दीनता(दुःख) का नाश कीजिये | युद्धक्षेत्र में शत्रुओं का विनाश कीजिये और मुझे विजय प्रदान कीजिये , आपको नमस्कार है, पुनः नमस्कार है |

        अचिन्त्यविक्रमेऽचिन्त्यरूपसौन्दर्यशालिनि |
अचिन्त्यचरितेऽचिन्त्ये जयं देहि नमोऽस्तु ते

आपका पराक्रम, रूप, सौन्दर्य, तथा चरित्र अपरिमित होने के कारण सम्पूर्ण रूप से चिन्तन का विषय बन नहीं सकता | आप स्वयं भी अचिन्त्य हैं | मुझे विजय प्रदान कीजिये, आपको नमस्कार है |

        ये त्वां स्मरन्ति दुर्गेषु देवीं दुर्गविनाशिनीम्। 
नावसीदन्ति दुर्गेषु जयं देहि नमोऽस्तु ते

जो लोग विपत्तियों में दुर्गति का नाश करने वाली आप भगवती का स्मरण करते हैं, वे विषम परिस्थितियों में दु:खी नहीं होते | आप मुझे विजय प्रदान कीजिये , आपको नमस्कार है |

        महिषासृक् प्रिये संख्ये महिषासुरमर्दिनि
शरण्ये गिरिकन्ये मे जयं देहि नमोऽस्तु ते  

युद्ध में महिषासुर का मर्दन करने वाली तथा उस महिषासुर के रक्तपान में अभिरुचि रखने वाली, शरण ग्रहण करने योग्य हिमालयसुता ! आप मुझे विजय प्रदान कीजिये , आपको नमस्कार है |

        प्रसन्नवदने चण्डि चण्डासुरविमर्दिनि  
संग्रामे विजयं देहि शत्रूञ्जहि नमोऽस्तु ते १०॥

चण्डासुर का नाश करने वाली प्रसन्नमुखी चण्डिके ! युद्ध में शत्रुओं का संहार कीजिये और मुझे वर प्रदान कीजिये, आपको नमस्कार है |

        रक्ताक्षि रक्तदशने रक्तचर्चितगात्रके  
रक्तबीजनिहन्त्री त्वं जयं देहि नमोऽस्तु ते ११

रक्तवर्ण के नेत्र वाली, रक्तरंजित दन्तपंक्ति वाली तथा रक्त से लिप्त शरीर वाली भगवती ! आप रक्तबीज का संहार करने वाली हैं, आप मुझे विजय प्रदान करें , आपको नमस्कार है |    

        निशुम्भशुम्भसंहन्त्रि विश्वकर्त्रि सुरेश्वरि
जहि शत्रून् रणे नित्यं जयं देहि नमोऽस्तु ते १२॥ 

निशुम्भ तथा शुम्भ का संहार करने वाली,  जगत् की सृष्टि करने वाली सुरेश्वरी ! आप नित्य युद्ध में शत्रुओं का संहार कीजिये और मुझे विजय प्रदान कीजिये, आपको नमस्कार है |

        भवान्येतज्जगत्सर्वं त्वं पालयसि सर्वदा।
रक्ष विश्वमिदं मातर्हत्वैतान् दुष्टराक्षसान् १३  

भवानी ! आप सदा इस सम्पूर्ण जगत् का पालन करती हैं | मात: ! आप इन दुष्ट राक्षसों को मारकर इस विश्व की रक्षा कीजिये |

        त्वं हि सर्वगता शक्तिर्दुष्टमर्दनकारिणि  
प्रसीद जगतां मातर्जयं देहि नमोऽस्तु ते १४॥

दुष्टों का संहार करने वाली भगवती ! आप सब में विद्यमान रहने वाली शक्तिस्वरूपा हैं, जगन्माता ! प्रसन्न होइये, मुझे विजय प्रदान कीजिये, आपको नमस्कार है |

        दुर्वृत्तवृन्ददमनि सद्वृत्तपरिपालिनि
निपातय रणे शत्रूञ्जयं देहि नमोऽस्तु ते १५    

दुराचारियों का दमन करने वाली तथा सदाचारियों का पालन करने वाली भगवती ! युद्ध में शत्रुओं का संहार कीजिये और मुझे विजय प्रदान कीजिये, आपको नमस्कार है |

        कात्यायनि जगन्मातः प्रपन्नार्तिहरे शिवे  
संग्रामे विजयं देहि भयेभ्यः पाहि सर्वदा १६

शरणागतों का दुःख दूर करने वाली, कल्याण प्रदान करने वाली जगन्माता कात्यायनी ! युद्ध में मुझे विजय प्रदान कीजिये और भय से सदा रक्षा कीजिये |

“इस प्रकार श्री महाभागवत् पुराण के अन्तर्गत् श्रीराम द्वारा की गयी कात्यायनी स्तुति सम्पूर्ण हुई” |

Other Mantras for Getting Married

You can Jap any of the mantras for getting married fast.

Durga Saptaptashati Mantra Jaap for Boy’s Marriage

पत्नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्। तारिणींदुर्गसंसार सागरस्य कुलोद्भवाम्॥

Maa Gauri Mantra for Getting Married

हे गौरि ! शंकरार्धांगि ! यथा त्वं शंकरप्रिया ।
तथा मां कुरु कल्याणि कान्तकान्तां सुदुर्लभाम्।

Lord Shankar Mantra for Getting Married

शं शंकराय सकल जन्मार्जित पाप विध्वंस नाय पुरुषार्थ चतुष्टय लाभाय पतिं मे देहि कुरुकुरु स्वाहा ।।

Don’t Miss: Lakshmi Prapti & Shri Ganesh Puja for Debt Relief & Create a Wealthy Fortune

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Maha Mrityunjaya Mantra and Rudrabhishek Puja for Good Health and a Long Life https://soultherapynow.com/maha-mrityunjaya-mantra-and-rudrabhishek-puja-for-good-health-and-a-long-life/ https://soultherapynow.com/maha-mrityunjaya-mantra-and-rudrabhishek-puja-for-good-health-and-a-long-life/#respond Sat, 29 Jun 2024 11:38:32 +0000 https://soultherapynow.com/?p=23082 Do you remember the COVID-19 -20 Time, when everyone was running here and there to fight for his/her life? When all of us lost one or another of our near or dear people. Still, now we are left with grief, loneliness, heaviness in the heart inside, and so much fatigue outside. We all are also […]

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Do you remember the COVID-19 -20 Time, when everyone was running here and there to fight for his/her life? When all of us lost one or another of our near or dear people. Still, now we are left with grief, loneliness, heaviness in the heart inside, and so much fatigue outside. We all are also experiencing anxiety here and there, and now we have come to know the true value of our lives. Do you wonder why? Because we all have experienced nearly a death-like experience in our life, by the name of COVID-19 and 20 both.

Not only we have seen deaths so closely, but we have also seen a few people who were very uncertain about their lives, however miraculously recovered from it very easily. The only option left to believe us was this was God’s act. There is a supreme power who is protecting us and our loved ones. And this is the right time to offer a prayer to the gods to say thank You and request their blessings to protect us.

“ऊँ त्र्यंबकम् यजामहे सुगंधीम् पुष्टी वर्धनम्।
उर्व्वावरूक मिवबंधनान् मृत्योर्मुक्षी यमामृतात्।।”

Mahamrityunjaya Mantra” is a very powerful chant. People think that this phrase is so strong that it can save your life when you are about to die. When you repeat this phrase over and over, it surrounds your body with divine protection. Now, even scientists agree that mantras work and that repeating them makes waves at certain levels that are good for people and their bodies. The Mahamrityunjaya Mantra is a prayer to Lord Shiva, who made the universe. We ask him to protect us from bad forces, pain, sorrow, and the circle of life.
As people, we are all made of energy, and our feelings and the emotions of others are ways that we constantly receive and send energy into the world.

We may be able to control our feelings, but not the feelings of other people. Now, when someone or more people think badly of us, their feelings send bad energy our way. When this bad energy comes into our bodies, it breaks through our protective shield and makes us less strong. Negative energy can easily attack and cause us problems when our body’s defense system is weak.

Because of this, it is very important to protect ourselves from the bad feelings and vibes of other people and our surroundings. A strong good aura around our bodies can help us do this. Regularly repeating the Mahamrityunjaya Mantra can help us do this. This chant is very helpful even just to listen to it.

Chanting the Mahamrityunjaya Mantra sends out waves that kill all the bad energy in the world and our bodies. The happy air around our bodies gets even stronger with this phrase, and we start to bring good things into our lives. This phrase is so strong that repeating it regularly can help people who are sick with many fatal diseases.

Book Maha Mrityunjaya Mantra and Rudrabhishek Puja for Good Health and a Long Life

Story Behind Mahamrityunjaya Mantra

The story of Kalantaka Shiva:

As per one ancient story, sage Mrikandu rishi and his wife Marudmati were devout followers of Shivji and requested Him for a child. He presented them with a dilemma: either a kid who is average and has a long lifespan, or an exceptional son but with a limited lifespan. The Rishis selected the exceptional son, therefore determining that he would live until the age of 16. From a young age, Rishis instructed Markandeya, their son, in the devotion of Lord Shiva. The very intelligent child quickly grasped everything. At the age of 16, when it was his time to die, he was engaged in the act of worshiping Shivji and reciting the Mahamritynjaya Mantra. Yamraj attempted to seize the young rishi, but Shivji materialized and engaged in a battle against death on behalf of His disciple. Ultimately, Shivji triumphed and bestowed eternal life onto the little lad. Shivji is referred to as Kalantaka because he put an end to or halted death. Be noted that, this kid further wrote a Nobel Grantha known as “Devi Bhagwat”, from which we recite “Chandi Path or Durga Saptashati”, a treasure of 700 shlokas, which can change anyone’s fortune.

Story of Mata Sati and Chandrama:

According to another Story, Mata Sati was familiar with this chant. Once, King Daksha became enraged with the moon (Chandra) and placed a curse upon it. The Moon was in a deteriorated condition and experiencing pain as a consequence. Mata Sati bestowed the mantra onto the moon, who attained tranquility as a result. Subsequently, Shivji took hold of the moon and placed it inside his hair. As these are the Puranic legends that explain the origin and importance of the Mantra, I recommend everyone to chant this Mantra.

How to Chant Mahamrityunjaya Mantra?

त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्

If you have difficulty in reading the above mantra in Hindi, then you read it is English (below).

om tryambakaṃ yajāmahe sugandhiṃ pushtivardhanam urvārukamiva bandhanānmṛmrityor mokshiye maamritat

This mantra is known as the Mahamritunjaya Mantra. The origin of this practice may be traced back to Rishi Markandeya, who included it in the Yajurveda for the first time as a component of Namakkam Chamakaam, a sacred text devoted to Lord Shiva.

Personal Experience with this Mantra:

I have several experiences with the Puja/Abhishekam and Hawan of Lord Shiva. One of them I am sharing with my readers. This mantra is considered amazing. Once I was suffering from breathlessness, dizziness, and vertigo, and after performing ECGs and other tests, the reports were normal. The doctor only gave medicines for anxiety and a few vitamin supplements, but I did not get any good results. I did Rudrabhishekam along with Maha Mritunjay Mantra Jaap, and Hawan of Mata Amriteshwari devi with some specific Homa ingredients. To my surprise, next day morning all my dizziness, breathlessness, and vertigo were gone, and, I did not have any such kind of health issues.

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Pitra Dosh Shanti Puja: Honoring Ancestors for Spiritual Harmony https://soultherapynow.com/pitra-dosh-shanti-puja-honoring-ancestors-for-spiritual-harmony/ https://soultherapynow.com/pitra-dosh-shanti-puja-honoring-ancestors-for-spiritual-harmony/#respond Thu, 27 Jun 2024 11:03:40 +0000 https://soultherapynow.com/?p=23077 According to the Hindu calendar Pitrupaksha starts immediately after the Ganesh festival and ends with the New moon day know as Sarvapitri amavasya. The Hindus offer homeage to their ancestors during pitrupaksha to get their blessings and help their soul attain the path of Heaven. According to Hinduism, the souls of three preceding generations of […]

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According to the Hindu calendar Pitrupaksha starts immediately after the Ganesh festival and ends with the New moon day know as Sarvapitri amavasya. The Hindus offer homeage to their ancestors during pitrupaksha to get their blessings and help their soul attain the path of Heaven.

According to Hinduism, the souls of three preceding generations of one’s ancestor reside in Pitru–loka, a realm between heaven and earth. This realm is governed by Yama, the god of death, who takes the soul of a dying man from earth to Pitru–loka. When a person of the next generation dies, the first generation shifts to heaven and unites with God, so Shraddha offerings are not given. Thus, only the three generations in Pitru–loka are given Shraddha rites, in which Yama plays a significant role. According to the sacred Hindu epics, at the beginning of Pitru Paksha, the sun enters the zodiac sign of Libra (Tula). Coinciding with this moment, it is believed that the spirits leave Pitru–loka and reside in their descendants’ homes for a month until the sun enters the next zodiac—Scorpio (Vrichchhika)—and there is a full moon. Hindus are expected to propitiate the ancestors in the first half, during the dark fortnight.

Narayan Nagbali / Tripindi Shraddha are also few rituals performed to get rid of Pitru Dosh. Performing these poojas’ during the period (5th to 19th September) of Pitrupaksha(पितृ पक्ष) will be more beneficial, however If you have severe PitruDosha, You can perform Shri Vishnu Sahatranaam Hawan, and Puja on every Month on Amavasya.

नवम पर जब सूर्य और राहू की युति हो रही हो तो यह माना जाता है कि पितृ दोष योग बन रहा है। शास्त्र के अनुसार सूर्य तथा राहू जिस भी भाव में बैठते है, उस भाव के सभी फल नष्ट हो जाते है। व्यक्ति की कुण्डली में एक ऎसा दोष है जो इन सब दु:खों को एक साथ देने की क्षमता रखता है, इस दोष को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।

कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है, यह पिता का घर भी होता है, अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी, जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है वे सूर्य मंगल शनि कहे जाते है और कुछ लगनों में अपना काम करते हैं, लेकिन राहु और केतु सभी लगनों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं, नवां भाव, नवें भाव का मालिक ग्रह, नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है। इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है, उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है, वह जीविका के लिये तरसता रहता है, वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से अपंग होता है।

अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है।

पितृ दोष के लक्षण

  • गर्भधारण में समस्या
  • गर्भपात
  • मानसिक व शारीरिक दृष्टि से विकलांग बच्चे
  • बच्चों की अकाल मृत्यु
  • विवाह में बाधा
  • वैवाहिक जीवन में क्लेश
  • बुरी आदत (70 फ़ीसदी व्यसन पितृदोष के कारण होते हैं)
  • नौकरी में कठिनाई
  • क़र्ज़

Book Pitra Dosh Shanti Puja

पितृ दोष निवारण मंत्र

ब्रह्म पुराण (२२०/१४३ )में  पितृ गायत्री मंत्र दिया गया है ,इस मंत्र कि प्रतिदिन माला या अधिक जाप करने से पितृ दोष में अवश्य लाभ होता है

पूर्वजों के स्मरण में प्रतिदिन ॐ श्री पितराय नम: तथा ॐ श्री पितृदेवाय नमः का २१ बार जाप करें।

ॐ श्री पितृभ्य: नम: मंत्र का ५१ बार जाप करने से पित्रों को प्रसन्नता होती है।

ॐ श्री सर्व पितृ देवताभ्यो नमो नमः मंत्र का १०८ बार जाप करने से पित्रों का आशीर्वाद प्राप्त होता है।

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महा योगिभ्य एव  च ।

नमः स्वाहायै स्वधायै  नित्यमेव नमो नमः ।।

ब्रह्म पुराण में इस मंत्र को पितृ गायत्री मंत्र कहा गया है, इस मंत्र कि हररोज़ १ माला या अधिक जाप करने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है।

पितृ दोष शांति के उपाय

१) अमावस्या का दिन पितृ दोष निवारण पूजा के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।  इस दिन पितृ दोष पूजा कराने से पितृ दोष दूर होता है।

२) पितृ दोष निवारण पूजा अमावस्या तिथि, या पितृ पक्ष के काल में किसी भी दिन की जा सकती है। इस पूजा का उत्तम काल दोपहर का होता है।

३) पितृ पक्ष में हररोज़ पित्रों की शांति के निमित से जल, जौं और काले तिल एवं पुष्प के साथ पित्रों का तर्पण कराने से पितृ दोष दूर होता हैं।

४) पित्रों की मृत्यु तिथिका पता न हो तब सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्राद्ध कराना चाहिए जिसके प्रभाव से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।

५) सर्व पितृ अमावस्या और हर अमावस्या के दिन १०८ बार श्री विष्णुसहत्रनाम का पाठ, पूजा एवं  हवन अनुष्ठान करने से से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है।

६) पितृ पक्ष में कौवों को भोजन कराने से पितृ दोष में राहत मिलती है। ऐसी मान्यता है की, पितृ पक्ष में हमारे पितृ कौवों का रूप धारण करके धरती पर अपने परिवार के वंशजों के पास भोजन प्राप्त करने जाते हैं।

७) पितृ पक्ष में गाय की सेवा करने से पित्रों को शांति मिलती है तथा गाय को भोजन कराने से विशेष लाभ मिलता है।

८) महामृत्युंजय मंत्र का जाप २१ सोमवार तक करने से पितृ दोष  का प्रभाव कम होता है।

९) प्रति अमावस्या इष्ट देवता एवं कुल देवता की पूजा के साथ दुर्गा सप्तशती का पाठ- पूजा एवं  हवन अनुष्ठान करने से भी पितृ दोष का प्रभाव काम होता है।

१०) पीपल के पेड़ के निचे मिटटी का दिया जला कर १०८ बार निचे दिए गए मंत्र का जाप करे, और पितृ देव से शांति का आशीर्वाद मांगें।

देवताभ्यः पितृभ्यश्च महा योगिभ्य एव  च ।

नमः स्वाहायै स्वधायै  नित्यमेव नमो नमः ।।

मार्कंडेय पुराण (९४/१३ )में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ  प्रसन्न होकर  स्तुतिकर्ता  मनोकामना कि पूर्ती करते हैं|

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।

इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।

तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि।।

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।

द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।

देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।

अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।

प्रजापतं कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।

नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।

सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।

अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।

अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।

तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।

नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।

अर्थ:

रूचि बोले – जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।

जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।

जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।

नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।

जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।

प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।

सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।

चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।

अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।

जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों।

विशेष – मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति ‘पितृस्तोत्र’ कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है।

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